नई दिल्ली/ दीक्षा शर्मा। भारत संस्कृति में चमत्कार और रहस्यों मंदिरों का खजाना है.
भारत के सबसे चमत्कारिक और रहस्यमयी मंदिरों में से एक है भगवान तिरुपति बालाजी. भगवान तिरुपति के दरबार में गरीब और अमीर दोनों सच्चे श्रद्धाभाव के साथ अपना सिर झुकाते हैं. हर साल लाखों लोग तिरुमला की पहाड़ियों पर स्थित इस मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर का आशीर्वाद लेने के लिए एकत्र होते हैं. कहते है कि भगवान बालाजी अपनी पत्नी पद्मावती के साथ तिरुमला में निवास करते हैं. ऐसी मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से भगवान के सामने प्रार्थना करते हैं, बालाजी उनकी सभी मुरादें पूरी करते हैं. मनोकामना पूरी होने पर भक्त अपनी श्रद्धा के अनुसार यहां आकर तिरुपति मंदिर में अपने बाल दान करते हैैं. इस चमत्कारी मंदिर से कई रहस्य जुड़े हैं. जो हम आपको बताएंगे.
मूर्ति से सुनाई देती है ध्वनि
मंदिर के प्रांगढ में अगर आप भगवान बालाजी की मूर्ति को पर कान लगाते हैं, तो आपको उस मूर्ति से समंदर की लहरों के प्रवाहित होने की आवाज सुनाई देगी..जो कि अपने आप में आप काफी आश्चर्य करने वाली बात है. इसी कारण भगवानबालाजी की मूर्ति में हमेशा नमी बनी रहती है. जब आप उस ध्वनि को महसूस करोगे तो आपको शांति का एहसास होगा.
मूर्ति पर लगे बाल
मान्यता है कि भवन तिरुपति बालाजी की मूर्ति पर लगे बाल असली हैं. कहते हैं कि ये बाल कभी उलझते नहीं हैं और हमेशा मुलायम रहते हैं. कहते है यह इसलिए है क्योंकि भगवान यहां खुद विराजते हैं.
अद्भुत छड़ी
मंदिर के प्रवेश द्वार के दाईं ओर एक छड़ी है. कहते हैं कि बचपन में इस छड़ी से बालाजी की पिटाई की गई थी. इस कारण उनकी ठुड्डी पर चोट लग गई थी. इतना ही नहीं इसी कारणवश तब से आज तक उनकी ठुड्डी पर शुक्रवार को चंदन का लेप लगाया जाता है. ताकि उनका घाव भर जाए.
हमेशा जलता है यह दीया
यह मंदिर कई चमत्कार का खज़ाना है. भगवान बालाजी के मंदिर में एक दीया है, जो सदैव जलता रहता है. इस दीए में न ही कभी तेल डाला जाता है और न ही कभी घी. कोई नहीं जानता कि वर्षों से जल रहे इस दीपक के पीछे क्या रहस्य है.
पचाई कपूर
भगवान की मूर्ति के लिए एक ख़ास तरह कि पचाई कपूर का इस्तमाल किया जाता है. कहते है कि इस कपूर को पत्थर या दिवार पर रगड़ा जाए तो वह उसी समय चटक जाता है. लेकिन भगवान बालाजी की प्रतिभा पर कोई असर नहीं होता.
भक्तो को नहीं देते फूल
मंदिर में चढ़ाये गये जितने भी फूल पत्ती होती है..उन्हें भक्तो को ना देकर मंदिर में ही स्थित एक कुंड में बिना पीछे देखे विसर्जित कर दिया जाता है, मंदिर में चढ़ाए उन फूलों को भक्तों द्वारा अपने पास रखना अच्छा नहीं माना जाता.
एक अनोखा गांव
मंदिर से 23 किमी दूर एक गांव है, और यहां बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित है. यहां पर सभी लोग बहुत ही नियम और संयम के साथ रहते हैं. मान्यता है कि बालाजी को चढ़ाने के लिए फल, फूल, दूध, दही और घी सब यहीं से आते हैं. इस गांव में महिलाएं सिले हुए कपड़े धारण नहीं करती हैं.
शेषनाग का प्रतीक है
इस मंदिर के बारे में कहा जाता हैं कि यह मेरूपर्वत के सप्त शिखरों पर बना हुआ है, जो की भगवान शेषनाग का प्रतीक माना जाता है. इस पर्वत को शेषांचल भी कहते हैं. इसकी सात चोटियां शेषनाग के सात फनों का प्रतीक कही जाती है. इन चोटियों को शेषाद्रि, नीलाद्रि, गरुड़ाद्रि, अंजनाद्रि, वृषटाद्रि, नारायणाद्रि और वेंकटाद्रि कहा जाता है. इनमें से वेंकटाद्रि नाम की चोटी पर भगवान विष्णु विराजित हैं और इसी वजह से उन्हें वेंकटेश्वर के नाम से जाना जाता है.