इसलिए नहीं बजता बदरीनाथ धाम में शंख, जानकर चौंक जाएंगे आप

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नई दिल्ली/दीक्षा शर्मा। भारतीय संस्कृति में रहस्य की कोई कमी नहीं है. भारत में कई ऐसे रहस्यम और अनछुए पहलू है, जिनके बारे में शायद ही कोई जानता होगा. हिंदू धर्म के पवित्र चार धामों में से एक हैं बद्रीनाथ धाम (Badrinath Dham) जिसके हाल ही में कपाट खोले गए थे. इस मंदिर में भगवान विष्णु का वास है. हर साल लाखों श्रद्धालु भगवान बद्रीनारायण के दर्शन करने यहां पहुँचते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि बद्रीनाथ धाम में शंख नहीं बजया जाता हैं जबकि किसी भी मंदिर में पूजा के दौरान शंख बजाना पवित्र माना जाता हैं. तो आइए आज हम बताते हैं कि इसके पीछे का रहस्य है क्या, आखिर ऐसा क्या है कि बद्रीनाथ धाम में कभी शंख नहीं बजाया जाता.

आपको बता दे कि बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड के चमोली जनपद में अलकनंदा नदी के तट के पास स्थित है. यह धाम बहुत पुराना है. कहा जाता है कि इसका निर्माण सातवीं या फ़िर नौवीं किया गया था. दरअसल, मंदिर में बद्रीनाराण की एक 3.3 फीट लंबी शालिग्राम से बनाई गई मूर्ति को स्थापित किया गया है.

क्या है बद्रीनाथ धाम रहस्य?

बद्रीनाथ धाम में शंख नहीं बजाने के पीछे ऐसी मान्यता बताई जाती है, कि एक समय में हिमालय क्षेत्र में दानवों का बड़ा आतंक हुआ करता था. वो इतना उत्पात मचाते थे कि ऋषि मुनि न तो मंदिर में ही भगवान की पूजा अर्चना तक कर पाते थे और न ही अपने आश्रमों में चैन से रह पाते थे. यहां तक कि वो उन्हें ही अपना निवाला बना लेते थे. राक्षसों के इस उत्पात को देखकर ऋषि अगस्त्य ने मां भगवती को मदद के लिए पुकारा, जिसके बाद माता कुष्मांडा देवी के रूप में प्रकट हुईं और अपने त्रिशूल और कटार से सारे राक्षसों का विनाश कर दिया.

हालांकि आतापी और वातापी नाम के दो राक्षस मां कुष्मांडा के प्रकोप से बचने के लिए भाग गए. इसमें से आतापी मंदाकिनी नदी में छुप गया जबकि वातापी बद्रीनाथ धाम में जाकर शंख के अंदर घुसकर छुप गया. इसके बाद से ही बद्रीनाथ धाम में शंख बजाना वर्जित हो गया और यह परंपरा आज भी चलती आ रही है जिसे हमेशा निभाया जाता है.

वैज्ञानिक आधार क्या है?

वैसे इसके पीछे वैज्ञानिक का मानना है, कि यह इलाका अधिकांश हिस्सा बर्फ़ से ढका रहता है और शंख से निकली ध्वनि पहाड़ों से टकराकर प्रतिध्वनि पैदा करती है. जिसकी वज़ह से दरार पड़ने व बर्फीले तूफान आने की आकांक्षा रहती है.

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