नई दिल्ली/दीक्षा शर्मा। कहते हैं कि यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है, क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती, बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है,जो हज़ारों साल से प्रज्वलित है. यह मंदिर माता के 51शक्तिपीठों में शामिल है. इस जगह माता सती की जीभ गिरी थी, इसलिए इसका नाम ज्वाला देवी मंदिर है. यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में स्थित है. यहां पृथ्वी के गर्भ से नौ अलग अलग जगह से ज्वालाएं निकलती हैं. इन नौ ज्योतियों को महाकाली,अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज,विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी,सरस्वती,अंबिका और अंजी देवी के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि इस मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवो को जाता है.
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मंदिर का इतिहास कहता है कि इस मंदिर का प्राथमिक निर्माण राजा भूमि चंद ने करवाया था.
बाद में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निर्माण कराया.
बादशाह अकबर ने खुदवा दी नहर
कहते हैं कि बादशाह अकबर ने इस जलती हुई ज्वाला को बुझाने के लिए नहर तक खुदवा दी थी, हालंकि ज्योति भूझी नहीं और अकबर इस रहस्य के आगे हार गया. बाद में बादशाह अकबर ने यहां सोने का छत्र चढ़ाया था. इसी मान्यता है कि जब अकबर ने इस छत्र को चढ़ाया तब यह ऐसी धातु में तब्दील हो गया जिसकी आज तक पहचान नहीं हो पाई.
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ONNG जुटी रहस्य जानने में
भारत आज़ाद होने के बाद इस मंदिर में ज्वाला निकलने के रहस्य को जानने के लिए हमारे देश के वैज्ञानिकों ने प्रयास शुरू किया. 1959 से ऑयल एंड नेचुरल गैस कारपोरेशन लिमिटेडज्वालामुखी व इसके आसपास के क्षेत्रों में कुएं खोद कर इस कार्य में जुड़ी हुई थी. ज्वालामुखी के टेढ़ा मंदिर में 1959 में पहली बार कुआं खोदा गया था. उसके बाद 1965 में
सुराणी में बग्गी, बंडोल, लंज,घीणा, सुराणी व कालीधार के जंगलों में खुदाई की गई थी.
मां की होती है विशेष आरती
ज्वाला देवी मंदिर की आरती काफ़ी मशहूर है. इस मंदिर में मां की पांच बार आरती की जाती है. पहली आरती सुबह 5 बजे की जाती है, मां की दूसरी आरती सुबह 7 बजे, फिर तीसरी आरती दोपहर में होती है. चौथी आरती मां की शाम को होती है. वहीं 9 बजे मां की आखिरी आरती होती है. जिसके बाद मां के मंदिर के कपाट बंद किए जाते है.
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