जब सबकी पसंद सरदार पटेल थे, तो नेहरु क्यों बने आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री?

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नई दिल्ली/दीक्षा शर्मा। 1946 में हम आज़ादी के बहुत करीब थे और उसी साल अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होने थे. एक तरफ हमें आज़ाद होने की उम्मीद मिल रही थी तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के द्वारा सरकार के गठन की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी थी. लगभग सभी बड़े नेताओं की नजर कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर टिकी हुई थीं ऐसा इसलिए क्योंकि तय हो चुका था कि जो भी अभी कांग्रेस अध्यक्ष बनेगा वहीं आगे चल कर आज़ाद भारत का पहला प्रधानमंत्री के पद के लिए भी चुना जाएगा. कई सारे आंदोलन का हिस्सा होने के सारे बहुत से कांग्रेस नेता जेल में थे. इसलिए 6 साल से कांग्रेस अध्यक्ष के पद के चुनाव नहीं हो पाए और इसी मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने ही कांग्रेस के अध्यक्ष पद की कमान संभाली हुई थी. 1946 के चुनाव में मौलाना आजाद भी पीएम बनने के लिए इच्छुक थे, लेकिन महात्मा गांधी के एक बार कहने पर यह विचार छोड़ दिया.

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नामांकन की तारीख

कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भरने के लिए 29 अप्रैल की तारीख तय की गई. इन मीटिंग में सबसे चौंका देने वाली बात यह थी कि गांधी के समर्थन के बाद भी राज्य की कांग्रेस समिति द्बारा समर्थन नहीं मिला. 15 राज्यों में से 13 राज्यों का समर्थन सरदार वल्लभ भाई पटेल के साथ था.

गांधी चाहते थे नेहरू बने अध्यक्ष

गांधी का समर्थन नेहरू के साथ था वो चाहते थे कि नेहरू अध्यक्ष पद को संभाले इसलिए उन्होंने जे बी कृपलानी पर दबाव डाला कि वे कांग्रेस कार्य समिति के कुछ सदस्यों को नेहरू को समर्थन देने के लिए राज़ी करें. और गांधी के सम्मान के लिए समिति के सदस्यों ने हां भर दी.
बाद में गांधी के कहने पर पटेल ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के उम्मीदवार की दौड़ से हट गए.
गांधी ये सब जो कर रहे थे यह संविधान के खिलाफ था.

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गांधी ने क्यों किया नेहरू का समर्थन

आज़ाद होने के बाद देश की प्रगति के लिए गांधी जी को मॉडर्न विचार वाले इंसान चाहिए था. जोकि उनके लिए विदेश में पढ़े नेहरू थे. गांधी मानते थे कि नरम नीति देश के लिए सफल साबित होगी. दूसरी वजह यह बताई जाती है कि नेहरू ने ये साफ जाहिर कर दिया था कि वह किसी व्यक्ति के आधीन कोई भी पद स्वीकार नहीं करेंगे. नेहरू से पक्षपाती स्नेह के कारण गांधी नेहरू की हार को अपनी हार के रूप में देख रहे थे.

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