भारत का वो मंदिर, जहां मूर्ति दिन में तीन बार बदलतीं हैं रूप

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नई दिल्ली/दीक्षा शर्मा। भारतीय संस्कृति में रहस्य और प्राचीन मंदिरों की कोई कमी नहीं है. दुनियाभर में अध्यात्म और आस्था के लिए प्रसिद्ध राज्य उत्तराखंड(uttarakhand)की अपनी अलग ही पहचान है. वैसे तो उत्तराखंड में अनगिनत प्रसिद्ध मंदिर मौजूद है. प्राचीन ऋषि मुनि की परंपरा को थामे उत्तराखंड यूं ही देव भूमि नहीं कहलाता लेकिन आज हम आपको उत्तराखंड के ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे है जहां की धारी देवी देवभूमि की रक्षक मानी जाती है.

इस मंदिर को धारी देवी(dhari devi) मंदिर के नाम से जाना जाता है, ऐसी मान्यता है कि जो उत्तराखंड की रक्षा में स्थापित है . कहा जाता है कि देवभूमि उत्तराखंड में और जितने भी धार्मिक स्थल है उनकी रक्षा भी धारी देवी ही करती है. देवी काली को समर्पित इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां मौजूद मां धारी उत्तराखंड के चारधाम की रक्षा करती हैं. माता को पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की रक्षक देवी माना जाता है. आपको बता दें कि, माता का सिद्धपीठ उत्तराखंड के श्रीनगर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यह मंदिर झील के बीचों बीच मौजूद है. धारी माता का रूप शांत मुद्रा में देखने को मिलता है. हालांकि इनके क्रोध के प्रकोप से भी कोई बचा नहीं है. यहां के लोगों की माने तो उनका कहना है कि केदारनाथ में आयी प्रलय धारी देवी के गुस्से का ही नतीजा है.

धारी देवी के बदलते रूप

कहा जाता है कि इस मंदिर में धारी माता रोजाना तीन रूप बदलती है. वह प्रात:काल कन्या, दोपहर में युवती और शाम को वृद्धा का रूप धारण करती है. पुजारियों की मानें तो मंदिर में मां धारी की प्रतिमा द्वापर युग से ही स्थापित है. 

पौराणिक महत्व

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार प्राकृतिक आपदा से मंदिर बह गया था. साथ ही साथ उसमें मौजूद माता की मूर्ति भी बह गई और वह धारो गांव के पास एक चट्टान से टकराकर रुक गई. कहते हैं कि उस मूर्ति से एक ईश्वरीय आवाज निकली, जिसने गांव वालों को उस जगह पर मूर्ति स्थापित करने का निर्देश दिया. इसके बाद गांव वालों ने मिलकर वहां माता का मंदिर बना दिया.  
उत्तराखंड में हाइडिल-पॉवर प्रोजेक्ट के चलते धारी देवी की प्रतिमा को 16 जून 2013 की शाम को हटाया गया था. प्रतिमा जैसे ही हटाई गई उसके कुछ घंटे बाद ही केदारनाथ में तबाही का मंजर देखने को मिला.

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