भारत का राष्ट्रवादी आंदोलन आंशिक रूप से 1940 तक देश के अंदर तक ही सीमित था परंतु राष्ट्रीय आंदोलन को देश के बाहर एक नई अभिव्यक्ति तब मिली जब सुभाष चंद्र बोस मार्च 1941 में देश से बाहर निकल गए थे और सहायता के लिए सोवियत संघ जाना चाहते थे।लेकिन जून 1941 में सोवियत संघ भी जब मित्र राष्ट्रों की ओर से युद्ध में उतरा तो वे जर्मनी चले गए वहां से 7 फरवरी 1943 में जापान के लिए चल पड़े ताकि जापानी सहायता से ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष चला सके भारत की स्वाधीनता के लिए सैनिक अभियान चलाने के उद्देश्य से उन्होंने सिंगापुर में आजाद हिंद फौज के प्रमुख बन गए। इसमें उनकी सहायता एक पुरानी क्रांतिकारी रासबिहारी बोस ने की सुभाष चंद्र बोस के वहां पहुंचने से पहले एक सेना बनाने के लिए कुछ काम जनरल मोहन सिंह कर चुके थे जिन्हें आजाद हिन्द फौज का संस्थापक कहा जाता है। जो ब्रिटिश भारत की सेना में कप्तान थे। दक्षिण पूर्व एशिया में रहने वाले भारतीय तथा मलाया सिंगापुर और बर्मा में जापानी सेनाओं द्वारा बंदी बनाए गए भारतीय सैनिक और अधिकारी बड़ी संख्या में आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए सुभाष चंद्र बोस को आजाद हिंद फौज के सिपाहियो ने अब “नेताजी” कहकर पुकारने लगे। नेताजी ने अपने सिपाहियो को ”जय हिंद” का मूल मंत्र दिया। बर्मा से भारत पर आक्रमण करने में आजाद हिंद फौज ने जापानी सेना का साथ दिया अपनी मातृभूमि को स्वाधीन कराने के विचार से प्रेरित होकर आजाद हिंद फौज के सैनिक अधिकारी यह आशा करने लगी थे कि वह स्वतंत्र भारत की अस्थाई सरकार का प्रमुख सुभाष चंद्र बोस को बनाकर उनके साथ भारत में उसके मुक्तिदाताओं के रूप में प्रवेश करेंगे।
1945 में युद्ध में जापान की हार हुई और सुभाष चंद्र बोस टोकियो जाते हुए रास्ते में एक दुर्घटना में मारे गए भारत के अधिकांश नेताओं ने उनकी इस नीति की आलोचना की ”फासीवादी ताकतों के साथ सहयोग” करके स्वाधीनता जीती जाए। आजाद हिंद फौज की स्थापना करके उन्होंने देशभक्ति का एक प्रेरणादायक उदाहरण भारतीय जनता और भारतीय सेना के सामने रखा।।
(यह लेखक के निजी विचार हैं)
सचिन भट्ट
Bsc 3rd year
LSMPG Pithoragarh