नई दिल्ली/आर्ची तिवारी। भगवान श्री राम ने रावण को मारा ये तो सभी जानते हैं पर रावण पिछले जन्म में कौन था, क्यों स्वयं भगवान को अवतार लेकर उसका संघार करना पड़ा, ये रहस्य कोई नहीं जानता. तो आइए आज हम आपको बताते हैं कि रावण अपने पिछले जन्म में क्या था और किस श्राप से उसे दैत्य योनि मिली?
रावण को श्राप मिलना
जय विजय नाम के दो विष्णु भक्त विष्णु जी के पार्षद हुआ करते थे. एक दिन सभी सनतकुमार ‘जिनको हम सनत, सनंन, सनन्तन, सनातन नाम से भी जानते हैं’ वे सभी ऋषि भगवान विष्णु से मिलने आए. वे सभी शरीर से किसी 4 साल के बच्चे के आकार में रहते थे. इसी भ्रम में आकर उन दोनों पार्षदों ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया और उन ऋषियों के आग्रह करने पर भी उनको जाने की अनुमति नहीं दी. तब क्रोध में आकर उन ऋषियों ने जय विजय को श्राप दे दिया। कहा- कि तुम 3 जन्म तक दैत्य योनि में जन्म लेते रहोगे.
जन्मों का विवरण
उन दोनों को अपने पहले जन्म में “हिरिण्याक्ष” और “हिरण्यकश्यप” के रूप में जन्म लेना पड़ा. ये दोनों दैत्य अत्यंत क्रूर और धरती के लिए कष्टकारी थे. वहीं हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद जो परम विष्णु भक्त था और विष्णु जी की पूजा में हमेशा मग्न रहता था, उसको इस कारण से बहुत सी यातनाएं दी गई पर उसने विष्णु की भक्ति नहीं छोड़ी. फिर हिरण्यकश्यप और हिरिण्याक्ष को मारने के लिए स्वयं विष्णु जी को अवतार लेकर उनका वध करना पड़ा. फिर दूसरे जन्म में रावण और कुंभकरण नाम से उन पार्षदों का जन्म हुआ। जिसकी वजह से विष्णु जी को श्री राम जी का अवतार लेकर रावण और कुंभकरण का उद्धार किया था. तीसरे जन्म में दंतवक्त्र (जय) और शिशुपाल (विजय) नाम से दो अनाचारी पैदा हुए। जिनको श्री कृष्ण ने द्वापर युग में जन्म लेकर उन दैत्यों का उद्धार किया था और अपने परम धाम को भेजा.
इसी तरह भगवान विष्णु हमेशा अपने भक्तों के हितों के लिए अवतार लेते रहते हैं और अपनी दया दृष्टि से पापियों और याचकों सभी का उद्धार करते रहते हैं.