नई दिल्ली/ दीक्षा शर्मा। भारतीय संस्कृति को आस्था और विश्वास का प्रतीक माना जाता है. आज निर्जला एकादशी व्रत है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा उपासना की जाती है. धार्मिक ग्रंथो में लिखा है कि इस दिन वेदों की जननी माता गायत्री की उत्पत्ति हुई थी. निर्जला एकादशी व्रत का अति विशेष महत्व है. सालभर के जितने भी एकादशी व्रत और अनुष्ठान होते हैं, निर्जला एकादशी उनमें सबसे भीषण लेकिन सबसे श्रेष्ठ और उत्तम फल देने वाली है. इस बार यह 2 जून यानी आज मंगलवार को है. इसे निर्जला, पांडव और भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं. इस तिथि पर भगवान विष्णु के लिए व्रत रखा जाता है. मान्यता है कि इस एक दिन के व्रत से सालभर की सभी एकादशियों के बराबर पुण्य फल मिलता है. नाम से स्पष्ट है कि बिना जल पिए रखा जाने वाला अनुष्ठान होने के कारण निर्जला एकादशी कहते हैं.
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निर्जला एकादशी का महत्त्व
एक महा में 24 एकादशी आती हैं, अगर मलमास रहे तो 26 एकादशी पड़ती हैं. इस सभी एकादशियों में सबसे अधिक निर्जला एकादशी की मान्यता है. इसका विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि इस जयेष्ठ महीने में सूर्य देव का प्रकोप बढ़ जाता है. खासकर नवतपा के दिनों में भीषण गर्मी पड़ती है. इससे शरीर में जल की कमी होने लगती है. इस समय में भूखे-प्यासे दिन भर भगवान का स्मरण करना कठिन साधन है. इसे साधक (साधन में स्थिर) ही कर पाने में सक्षम हो पाते हैं. यह भी माना जाता है कि भगवान विष्णु इस दिन चार महीनों की नींद से जागते हैं. और भगवान विष्णु देवशयानी एकादशी पर सोने का आरम्भ करते है. एकदशी का दिन चतुर्मास के अंत का प्रतीक है और सारे शुभकार्यों की शुरुआत हो जाती है. यह माना जाता है कि भगवान विष्णु ने इस दिन देवी तुलसी से विवाह किया था.
तुलसी का विशेष महत्व
प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी के पत्तों का विशेष महत्त्व होता है. कई लोग इस दिन तुलसी विवाह भी करते हैं जिसमें विष्णु जी के स्वरूप शालिग्राम जी और तुलसी जी का विवाह कराया जाता है.
निर्जला एकादशी व्रत का महत्त्व
इस व्रत की मान्यता है की निर्जला एकादशी का व्रत करने से अश्वमेध तथा सौ यज्ञों का फल मिलता है. इस पुण्य व्रत को करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है . तथा वह स्वर्ग की प्राप्ति करता है. प्रबोधिनी एकादशी के दिन जप, तप, गंगा स्नान, दान, होम आदि करने से अक्षय फल प्राप्त होता है.
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पौराणिक कथा
एक बार भगवान विष्णु से उनकी प्रिया लक्ष्मीजी ने आग्रह के भाव में कहा- हे भगवान! अब आप दिन-रात जागते हैं, लेकिन एक बार सोते हैं तो फिर लाखों-करोड़ों वर्षों के लिए सो जाते हैं तथा उस समय समस्त चराचर का नाश भी कर डालते हैं इसलिए आप नियम से विश्राम किया कीजिए. आपके ऐसा करने से मुझे भी कुछ समय आराम का मिलेगा. लक्ष्मीजी की बात भगवान को उचित लगी. उन्होंने कहा कि तुम ठीक कहती हो. मेरे जागने से सभी देवों और खासकर तुम्हें कष्ट होता है. तुम्हें मेरी सेवा से वक्त नहीं मिलता इसलिए आज से मैं हर वर्ष 4 मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा. मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलयकालीन महानिद्रा कहलाएगी. यह मेरी अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी रहेगी. इस दौरान जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे, मैं उनके घर तुम्हारे समेत निवास करूंगा.