नई दिल्ली/आर्ची तिवारी। स्वामी विवेकानंद जी का असल नाम नरेन्द्रनाथ दत्ता था। उन्होंने पूरे विश्व में भारत के आध्यात्मिक ज्ञान को बांटा, भारत की विशेषता बताई। वे मूर्ति पूजा के खिलाफ थे पर उस परम पर उनका अनन्य भाव से भक्त्ति थी। उन्होंने अपना 39 वर्ष का जीवन सिर्फ लोगों को जीवन की महत्ता समझाने में निकला। उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए तर्कों को देश विदेश के बहुत विद्वान साथ मिलकर भी नहीं भेद पाते थे, और यही उनकी विशेषता थी।
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” दा मौंक ऐज़ अ मैन ” नाम की किताब एक बंगाली लेखक ‘शंकर’ के द्वारा लिखी गई। उस किताब में स्वामी विवेकानंद जी से जुड़ी हर छोटी-बड़ी बातें बताई गई हैं। उसी किताब के अनुसार लेखक शंकर ने यह भी बताया है कि विवेकानंद जी का शरीर अपने जीवन काल में बहुत ही ज्यादा रोगों से ग्रसित था। आए दिन उनको कोई न कोई बिमारी लगी ही रहती थी। उस किताब के अनुसार उस विवेकानंद जी को आइसोमानिया, लीवर और किडनी में दिक्कत, मलेरिया, मधुमेह या डाइबिटीज, माइग्रेन, और ह्रदय रोग भी था। इन सभी बिमारियों को मिलाकर और अन्य बिमारियों की गणना के अनुसार उनको 31 प्रकार के रोग थे। स्वामी जी के अनुसार मानव शरीर रोगों का घर होता है।
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विवेकानंद जी हमेशा से ही अपनी भारत की धरती पर अपनी अंतिम सांस लेना चाहते थे। वे अपने आखिरी समय में आंखों में आंसू भरकर अपने देश में मरने की तीव्र इच्छा रखे हुए थे। उन्होंने अपने तीसरे हार्ट एटैक में प्राण छोड़ दिए। 4 जून, 1902 को उन्होंने अपनी आखरी सांस ली और पंचतत्व में विलीन हो गए। वे 39 वर्ष, 5 महीने और 24 दिन इस संसार में रहे और इतनी कम उम्र में ही उन्होंने अविश्वसनीय कार्य किए।