अगले जन्म मजदूर ना बनाइयो

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जिस मजदूर को अर्थव्यवस्था का पहिया कहकर सरोकार सम्बोधित किया करते है आज उसी पहिये की जिंदगी या तो थम चुकी है या फिर टूट चुकी है।
कोरोना काल में जिस तरह से गरीब, प्रवासी मजदूर पर पहाड़ टूट पड़ा है मानो जैसे एक तबाही का मंजर हो गया हो।

लॉक डाउन- 3 व 4 में मजदूर कभी सड़क तो कभी ट्रेन की पटरी पर मर रहे हैं। कोई श्रमिक ट्रेन पर तो कोई प्लेटफार्म पर भूखे प्यासे मर रहा है। हम इस अदृश्य बीमारी से जीते या ना जीते लेकिन गरीब,बेबस मजदूर की जान बच जाए यही बहुत है।


यदि अगले जन्म नाम की कोई प्रक्रिया होती है तो मैं चाहता हूं कि लोकसभा के 545 सदस्य और राज्यसभा के 245 सदस्य हैं वह सभी राज्यों की विधानसभा व विधान परिषद के सदस्य अगले जन्म में मजदूर अवश्य बने तभी उन्हें एक बेबस, गरीब मजदूर की पीड़ा का अनुभव हो सकता है। अब समय आ चुका है कि जनसंख्या रजिस्टर बनाया जाए और मजदूर की जनसंख्या का आकलन किया जाये। मुझे लगता है कि इस देश में लगभग 5 करोड़ से ज्यादा मजदूर होंगे। एक मजदूर आयोग बनाया जाए जो मजदूरों का लेखा-जोखा रखे व संकट के समय उनकी आर्थिक मदद करें व उनकी आवाज उठा सकें।


जिस आर्थिक पैकेज को जीडीपी का 10% बताया गया जिसकी रकम ₹20 लाख करोड़ हैं आखिर क्या इस आर्थिक पैकेज से गरीब मजदूर परिवार का पेट भर पा रहा है।
सरकार की नीतियां कहीं ना कहीं विफल नजर आ रही है। सरकार ने कभी सोचा कि जो मजदूर इस कोरोना काल में मर गये उनका परिवार कैसे चल रहा है? उनके परिवार के बच्चो का क्या भविष्य है? आजादी के 72 वर्ष बीत गए लेकिन मजदूर की स्थिति जस की तस बनी हुई है।

मयंक शर्मा
एमएड छात्र
रूहेलखंड विश्वविद्यालय-बरेली

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