ब्रेन में इस हार्मोन की कमी से हो सकते हैं डिप्रेशन के शिकार ,जानें कैसे अवसाद में बदल जाती है चिंता और तनाव

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नई दिल्ली/दीक्षा शर्मा। 14 जून,रविवार को अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने अपने घर पर खुदकुशी कर ली थी. और इस खबर से हर कोई स्तब्ध रह गया है. बहुत सारे लोग यह सोचने को विवश हैं कि आखिर इसके पीछे क्या कारण रहे होंगे. खबरों के मुताबिक, सुशांत 6 महीने से डिप्रेशन से जूझ रहे थे और उनका इलाज और दवाइयां भी चल रही थी. क्या आप जानते हैं कि आखिर इस डिप्रेशन की शुरुआत कैसे होती है? दिमाग में ऐसा क्या चल रहा होता है कि लोग अनुचित कदम उठाने की ओर बढ़ जाते हैं और कुछ गलत कर बैठते हैं. मनोचिकित्सक बताते हैं कि कोई भी व्यक्ति अचानक डिप्रेशन में नहीं चला जाता है, बल्कि तनाव और चिंताएं लंबे समय में डिप्रेशन का रूप ले लेती है. 
डिप्रेशन के संबंध में मनोचिकित्सक अक्सर बताते हैं कि यह एक तरह का मेंटल डिसऑर्डर है, जो तुरंत किसी व्यक्ति पर हावी नहीं हो जाता है. इसके अलग-अलग चरण होते हैं. अगर व्यक्ति में कुछ लक्षणों के आधार पर शुरुआत में ही इसकी पहचान हो जाए तो उस व्यक्ति को गंभीर डिप्रेशन में जाने से बचाया जा सकता है. इस समय इंसान को किसी अपने की जरूरत होती है. डिप्रेशन की शुरुआत तनाव से होती है. व्यक्ति को तनाव की निश्चित वजह जरूर पता होनी चाहिए, ताकि किसी अपने से बात कर सके। 

योग का सहारा

अगर शुरुआत में ही तनाव को कम नहीं किया जाए तो यह एंग्जाइटी यानी चिंता में बदल जाता है और यही एंग्जाइटी यदि लंबे समय तक बनी रहे और उसका ट्रीटमेंट ना हो तो वह डिप्रेशन का रूप ले लेती है. इसके बाद व्यक्ति गहरे अवसाद की ओर बढ़ने लगता है.
तनाव को कम करने के लिए हम योग का सहारा ले सकते हैं. तात्कालिक तनाव हो तो अपनी पसंद का संगीत सुनकर या अपने किसी खास से बात करके भी उसे दूर किया जा सकता है. इसके अलावा हमें खुल कर बात करनी चाहिए.

नकारात्मक विचार

डिप्रेशन की शुरुआत नकारात्मक विचारों से घिरे रहने के कारण होती है. ना चाहते हुए भी अगर व्यक्ति के दिमाग में निगेटिव बातें चलती रहती हैं. ऐसी बातें विचार के रूप में उसके दिमाग पर हावी होने लगते हैं और व्यक्ति का व्यवहार भी निगेटिव विचारों की तरह नकारात्मक होने लगता है.

क्रॉनिक डिप्रेशन

अगर बात करें क्रॉनिक डिप्रेशन की तो इस स्थिति में पीड़ित व्यक्ति को अकेलापन/एकाकीपन, निराशा, हताशा, भय और घबराहट इस कदर घेर लेते हैं कि उसे डर लगने लगता है. इस स्थिति में उसे औरों की सलाह भी सही नहीं लगती, क्योंकि वह उसपर भरोसा ही नहीं कर पाता है.  किसी की सलाह पर वह आराम से भरोसा कर नहीं पाता है.

हार्मोनल असंतुलन

क्रॉनिक डिप्रेशन की स्थिति में व्यक्ति को लगने लगता है कि वह दुनिया में बहुत अकेला है. ऐसे में इस व्यक्ति को लगता है कि किसी को उसकी जरूरत नहीं, चिंता नहीं. इस तरह के विचार हॉर्मोनल असंतुलन के कारण आते हैं. किसी अपने को खोने के बाद भी व्यक्ति ऐसी स्थिति में पहुंच सकता है.

सेरोटॉनिन हॉर्मोन 

डिप्रेशन का मुख्य कारण हमारे ब्रेन में सेरोटॉनिन हॉर्मोन की कमी होती है. हमारे दिमाग में जब इस हॉर्मोन का बनना कम हो जाता है तो व्यक्ति निगेटिविटी यानी नकारात्मकता की तरफ बढ़ने लगता है.

हैप्पी हॉर्मोन

सेरोटॉनिन एक हैप्पी हॉर्मोन है. जब हमारे दिमाग के अंदर सही मात्रा में इसका सीक्रेशन होता रहता है, तब हम खुद को खुश और सुरक्षित महसूस करते हैं. लेकिन जब किसी तरह की शारीरिक समस्या या मानसिक तनाव के कारण दिमाग में इसका उत्पादन कम हो जाता है तो व्यक्ति डिप्रेशन की ओर बढ़ने लगता है.

मानसिक बीमारियों का भी इलाज़ है

डॉक्टर्स का मानना है कि जैसे शारीरिक बीमारियों का इलाज है, उसी तरह मानसिक बीमारियों का भी इलाज है. डिप्रेशन एक मानसिक बीमारी है, जिसे मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक की सलाह और मदद से समय रहते आसानी से ठीक किया जा सकता है.
समय रहते डिप्रेशन का इलाज शुरू कर दिया जाए तो व्यक्ति के जल्दी ठीक होने की संभावना रहती है. इसके लिए जरूरी है कि डिप्रेशन की जल्द से जल्द पहचान हो जाए. बातचीत और व्यवहार में बदलाव, उदासी, चिड़चिड़ापन जैसे लक्षणों के आधार पर डिप्रेशन की पहचान की जा सकती है. 

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