कोरोना से अर्थव्यवस्था पर प्रहार: एक गंभीर चुनौती

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फ़ोटो सौर्स : गूगल

कोरोना वायरस ने एक वैश्विक आपदा लेकर समूचे विश्व में कोहराम मचा दिया जिससे भारत देश भी अछूता नहीं रहा। आज कोरोना के कारण भारत देश की ही नहीं अपितु पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था विगत वर्षों से भी पीछे जाने की संभावना है। यह एक अत्यंत गंभीर व चुनौतीपूर्ण समस्या है.

22 मार्च 2020 से शुरू हुए 21 दिन के  लॉक डाउन ने भारत देश की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है लेकिन इस गंभीर परिस्थिति में भी प्रधानमंत्री मोदी जी ने ऐतिहासिक आर्थिक सहायता पैकेज प्रदान कर गरीब, दिहाड़ी मजदूर आदि की आर्थिक स्थिति को बर्बाद होने नहीं दिया मुझे लगता है वह दिन दूर नहीं जब हम भारतवासी कोरोना से विजय पा ही लेंगे किंतु उसके बाद भी भारत देश की अर्थव्यवस्था का स्तंभ मजबूत हो पायेगा? यही सबसे बड़ा प्रश्न है.

यदि भारत देश की अर्थव्यवस्था को और ज्यादा मजबूत  खड़ा करना है तो समय आ चुका है कि हम स्वरोजगार को बढ़ावा दें और नई-नई सरकारी योजनाओं जैसे मुद्रा लोन आदि के माध्यम से रुक चुके व्यापारों को और मजबूत करें तथा साथ ही सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगो को मजबूत किया जाये.

भारत सरकार व्यापार वर्ग के सभी व्यापारियों से ईमानदारी पूर्वक आयकर जमा करने के लिए अपील करें जिससे कि भारत सरकार का राजस्व बढ़ सके इस विकट परिस्थितियों में भी हम अपना और अपनी सरकार का साथ नहीं देंगे तो शायद ही हम अपनी अर्थव्यवस्था को बचा पाएंगे.

 क्या कारण है कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था का पूरे विश्व में डंका है?

इस प्रश्न का उत्तर ही भारत देश की अर्थव्यवस्था को और मजबूत कर देगा यदि हम सभी भारतवासी अपनी समस्या से ज्यादा अपने देश की समस्या का समाधान करने में जुट जाएंगे तो निश्चित ही हम पूरे विश्व में विश्व गुरु की भूमिका में प्रतीत हो सकेंगे.

लॉकडाउन से पहले भारत के शेयर बाजार में ऐतिहासिक गिरावट आ रही थी क्योंकि अन्य देशों में कोरोना के कारण लॉकडाउन चल रहा था भारत देश करीब 20 अन्य देशों में अपनी दवाइयां व कृषि सामान को निर्यात करता है इस कार्य को वे और ज्यादा बढ़ा कर अपना वैश्विक व्यापार बढ़ा सकता है जिससे कि अर्थव्यवस्था में काफी हद तक सुधार हो सकता है विश्व में भारत जेनेरिक दवाइयों का बहुत बड़ा उत्पादक है.

इस अर्थव्यवस्था को पुनः खड़ा करने के लिए सभी देशों को एक साथ आना  पड़ेगा और व्यापार नियमों को सरल सुगम बनाकर अर्थव्यवस्था को उस चरम सीमा पर ले जाना पड़ेगा जहां वैश्विक अर्थव्यवस्था पुनः जीवित हो सके.

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

एमएड छात्र,मयंक शर्मा

महात्मा ज्योतिबाफुले रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली

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