नई दिल्ली/आर्ची तिवारी। शहीद भगत सिंह के साथ फांसी की सजा पाने वाले शिवराम राजगुरू की आज जयंती है, हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में चंद्रशेखर आजाद के अलावा अगर कोई शानदार शूटर था तो वो शिवराम राजगुरु थे, भारत में जब भी क्रांतिकारियों का नाम लिया जाता है तब राजगुरु, भगत सिंह व सुखदेव जैसे महान क्रांतिकारियों का नाम सबसे पहले लिया जाता है। 30 मार्च 1931 में राजगुरु, भगत सिंह, सुखदेव के फांसी के तख्त पर चढ़ने के बाद, देश के हर कोने से राजगुरु, भगत सिंह, सुखदेव जैसे न जाने कितने क्रांतिकारियों ने जन्म ले लिया था। राजगुरु, भगत सिंह के खास मित्रों में से एक थे। वहीं भगत सिंह की जीवनी में राजगुरु के बारे में कुछ ऐसे किस्से बताए गए हैं, जिसके कारण भगत सिंह राजगुरु से सबसे ज्यादा प्रभावित रहे, तो आइए जानते हैं राजगुरु के बारे में,
भगत सिंह राजगुरु की इन चीजों से रहे प्रभावित
राजगुरु हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) में सहभागी बनने के बाद भगत सिंह से उन्हें खासा जुड़ाव हो गया। भगत सिंह जी राजगुरु की कई बातों को पसंद करते थे। वे उनकी कई बातों से प्रभावित और अचंभित रहते थे। जैसे
- राजगुरु का इतनी छोटी उम्र में संस्कृत कंठस्थ होना भगत सिंह को बहुत भाता था।
- राजगुरु कुश्ती में बेहद निपुण थे। कहा जाता है कि वे एक बार में पांच से छह लोगों को गिरा सकते थे। जिसकी कारण भगतसिंह राजगुरु की कुश्ती कला से प्रभावित रहे।
- राजगुरु एक बेहद निपुण निशानेबाज भी रहे। इसीलिए भगत सिंह राजगुरु की निशानीबाजी के भी कायल रहे।
भगत सिंह और राजगुरु कैसे एक दूसरे से जुड़े
बचपन से ही आसपास के क्रांति भरे माहौल में पले बढ़े राजगुरु हमेशा देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत रहते थे।छोटी उम्र में पिता के देहांत होने के बाद बहुत छोटी उम्र में ही ये वाराणसी विद्याध्ययन करने एवं संस्कृत सीखने चले गए। इन्होंने हिन्दू धर्म-ग्रंन्थों तथा वेदो का अध्ययन तो किया ही “लघु सिद्धान्त कौमुदी” जैसा क्लिष्ट ग्रन्थ बहुत कम आयु में कण्ठस्थ कर लिया था। इन्हें कसरत का बेहद शौक था और छत्रपति शिवाजी की छापामार युद्ध-शैली के बड़े प्रशंसक थे। विद्या अध्ययन के दौरान ही उनकी मुलाकात देश के क्रांतिकारियों से हुई। जिसमें उनको हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) के बारे में पता चला। यह संस्था चंद्रशेखर और उनके अन्य क्रांतिकारी दोस्तों के साथ चलाई जा रही थी। जिसमें भगत सिंह भी सदस्य थे। राजगुरु तत्काल ही चंद्रशेखर आजाद से संपर्क कर इस आर्मी के सदस्य बने। हालांकि, चंद्रशेखर को पहले ही सूत्रों ने राजगुरु को सदस्य बनाने के लिए सुझाव दिए थे.
राजगुरु और भगत सिंह इस नेता से थे प्रभावित
भगत सिंह और राजगुरु एक अच्छे दोस्त होने के साथ-साथ एक महान और साहसी क्रांतिकारी रहे। इसी के साथ उनकी पसंद भी काफी हद तक मिलती थी। राजगुरु और भगत सिंह एक नेता से हमेशा प्रभावित रहे और वो थे कांग्रेस के एक बड़े तबके के अध्यक्ष लाला लाजपत राय। फरवरी 1928 में जब साइमन कमीशन की स्थापना हुई तब उस कमीशन में कोई भारतीय ना होने के कारण लाला लाजपत राय ने अंग्रेजो के खिलाफ विरोध छेड़ा। उन्होंने अंग्रेजी दफ्तर के बाहर “साइमन गो बैक” के नारे लगाकर लाठीचार्ज में अपनी जान दे दी। जिसके बाद क्रान्तिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने वर्तमान नई दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेण्ट्रल एसेम्बली के सभागार संसद भवन में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिये बम और पर्चे फेंके थे। बम फेंकने के बाद वहीं पर दोनों ने अपनी गिरफ्तारी भी दी।
बचपन से ही थे देशप्रेमी
राजगुरु का जन्म 24 अगस्त 1908 में पुणे राज्य के खेड़ा जगह पर में हुआ था। वे एक ब्राह्मण परिवार से नाता रखते थे। सिर्फ 6 साल की उम्र में 1914 सन में उनके पिता हरिनारायण राजगुरु का अचानक से देहांत हो गया। जिसके बाद परिवार की पूरी जिम्मेदारी उनके बड़े भाई दिनकर राजगुरु ने संभाली। 1908 के समय देश में क्रांति भड़की हुई थी। इसी क्रांति भरे वातावरण में राजगुरु ने बचपन से अपना होश संभाला। आसपास की घटनाओं को देखते हुए वे छोटी उम्र से समझने लगे थे कि अंग्रेजों ने कैसे भारत की संस्कृति सभ्यता व उसके सम्मान को लूटा है। जिसके कारण वे हमेशा से ही देश प्रेम की भावना से ओतप्रोत रहे। वहीं 23 मार्च 1931 को शाम में करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई।