अयोध्या: सनातन धर्म और सिख धर्म का ‘संगम स्थल’
परिचय
अयोध्या भारतीय इतिहास, संस्कृति और धार्मिक परंपराओं का केंद्र बिंदु रही है। यह न केवल सनातन धर्म (हिंदू धर्म) के लिए बल्कि सिख धर्म के अनुयायियों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखती है। हाल ही में केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने अयोध्या को ‘सनातन धर्म और सिख धर्म का संगम स्थल’ करार दिया है। उनके इस कथन के पीछे ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं की गहरी जड़ें हैं। इस लेख में हम अयोध्या की ऐतिहासिक महत्ता, दोनों धर्मों के बीच संबंध और उनकी सांस्कृतिक विरासत पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
अयोध्या का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
अयोध्या को राम जन्मभूमि के रूप में जाना जाता है और यह हिंदू धर्म के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। यह वह स्थान है जहां भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था और यह रामायण के महत्वपूर्ण घटनाओं का केंद्र रहा है।
वहीं, सिख धर्म के दृष्टिकोण से भी अयोध्या एक महत्वपूर्ण स्थल है। गुरु नानक देव जी, गुरु तेग बहादुर जी और गुरु गोबिंद सिंह जी का इस स्थान से संबंध रहा है। यह शहर सिख गुरुओं की शिक्षाओं और उनके द्वारा प्रचारित धर्मनिरपेक्षता, प्रेम और भक्ति की भावना को दर्शाता है।
अयोध्या और सिख धर्म: ऐतिहासिक संबंध
1. गुरु नानक देव जी और अयोध्या
गुरु नानक देव जी, सिख धर्म के संस्थापक, ने अपने चार उदासियों (धार्मिक यात्राओं) के दौरान अयोध्या का दौरा किया था। वे यहाँ सनातन परंपरा और भगवान राम से जुड़ी धार्मिक मान्यताओं से अवगत हुए। उनकी यात्राओं का उद्देश्य धार्मिक एकता और मानवता के प्रति प्रेम को बढ़ावा देना था।
2. गुरु तेग बहादुर जी और अयोध्या
गुरु तेग बहादुर जी, जो सिख धर्म के नौवें गुरु थे, उन्होंने भी अयोध्या का दौरा किया था। वे मुगलों के अत्याचारों के खिलाफ खड़े हुए और हिंदुओं की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। उनकी कुर्बानी सनातन धर्म और सिख धर्म के बीच गहरे संबंध को दर्शाती है।
3. गुरु गोबिंद सिंह जी और अयोध्या
गुरु गोबिंद सिंह जी, सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु, का भी अयोध्या से संबंध है। वे भगवान राम के आदर्शों और उनके जीवन से प्रेरित थे। उन्होंने धर्म की रक्षा और अधर्म के विरुद्ध संघर्ष करने की प्रेरणा श्रीराम के जीवन से ली।
अयोध्या में कई ऐसे स्थान हैं जो सिख धर्म से जुड़े हुए हैं। इनमें प्रमुख रूप से गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड और अन्य ऐतिहासिक स्थलों का नाम लिया जाता है। इन गुरुद्वारों में हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और यहां दोनों धर्मों के अनुयायी एक साथ पूजा और अरदास करते हैं।
सनातन धर्म और सिख धर्म: समानताएँ
- एक ईश्वर की उपासना: सनातन धर्म और सिख धर्म दोनों में एक परम शक्ति की उपासना का सिद्धांत मौजूद है।
- धर्म की रक्षा और सत्य का अनुसरण: दोनों धर्मों में अधर्म के खिलाफ लड़ाई और धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने की परंपरा है।
- भक्ति और कीर्तन पर बल: सनातन धर्म में भजन-कीर्तन की परंपरा है, जबकि सिख धर्म में भी कीर्तन और गुरबाणी का विशेष महत्व है।
- सेवा और करुणा: दोनों धर्म मानव सेवा को प्राथमिकता देते हैं। हिंदू धर्म में ‘सेवा परमो धर्मः’ कहा गया है और सिख धर्म में ‘सेवा’ को सर्वोच्च स्थान दिया गया है।
- संत परंपरा: दोनों ही धर्मों में संतों, महापुरुषों और गुरुओं का विशेष स्थान है, जिन्होंने समाज में नैतिकता, प्रेम और सेवा की भावना को बढ़ावा दिया।
आधुनिक परिप्रेक्ष्य में अयोध्या का महत्व
वर्तमान में अयोध्या केवल एक धार्मिक स्थल नहीं बल्कि सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध शहर के रूप में उभर रहा है। राम मंदिर के निर्माण के साथ-साथ यहाँ पर्यटन और धार्मिक समागम को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।
भारतीय संस्कृति और धर्मों की एकता को दर्शाते हुए अयोध्या आने वाले समय में धार्मिक सौहार्द और विरासत के संरक्षण का प्रतीक बनेगा।
निष्कर्ष
अयोध्या केवल सनातन धर्म का ही नहीं, बल्कि सिख धर्म का भी महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। यह वह स्थान है जहां गुरु नानक देव जी आए, गुरु तेग बहादुर जी ने धर्म रक्षा के लिए प्रेरणा दी और गुरु गोबिंद सिंह जी ने सत्य और न्याय की राह पर चलने की शिक्षा दी। अयोध्या का यह गौरवशाली इतिहास दर्शाता है कि भारत में धर्मों के बीच गहरा संबंध रहा है।
केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी का यह कथन कि ‘अयोध्या सनातन धर्म और सिख धर्म का संगम स्थल है’, इस ऐतिहासिक और आध्यात्मिक संबंध को सार्थक रूप से प्रस्तुत करता है। यह स्थान भविष्य में भी धर्म और संस्कृति के मिलन का केंद्र बना रहेगा।